इंदौर: मध्य भारत के इंदौर में एक 42 वर्षीय व्यक्ति के लिए मछली की पित्त की थैली का सेवन घातक साबित होने वाला था। इस दुर्लभ मामले में युवक के लिवर और किडनी पूरी तरह फेल हो गए थे, लेकिन मेदांता अस्पताल के विशेषज्ञों ने सफल इलाज कर उसकी जान बचा ली। अब वह पूरी तरह स्वस्थ है और डायलिसिस की जरूरत भी नहीं रही।
मेदांता अस्पताल के किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. जय सिंह अरोरा ने बताया कि युवक ने अनजाने में मछली की पित्त की थैली खा ली थी, जिसके कुछ घंटों बाद ही उसे उल्टी और दस्त की शिकायत होने लगी। शुरुआत में उसने एक स्थानीय अस्पताल में इलाज कराया, लेकिन वहां उसकी हालत बिगड़ती गई। जांच में पाया गया कि उसके लिवर एंजाइम्स (SGOT और SGPT) 3000-4000 के खतरनाक स्तर तक पहुंच गए थे और क्रिएटिनिन 8-9 तक बढ़ गया था। मरीज को लगा कि यह सामान्य फूड पॉयजनिंग है, लेकिन जब हालत ज्यादा गंभीर हुई, तब उसे मेदांता अस्पताल लाया गया।
समय पर इलाज से बची जान
डॉ. अरोरा के अनुसार, मरीज को तुरंत स्टेरॉयड और डायलिसिस की मदद से उपचार दिया गया। शुरुआती चार डायलिसिस के बाद स्थिति में सुधार आने लगा और फिर डायलिसिस बंद कर दिया गया। बिना किसी सर्जरी के, सिर्फ दवाइयों और मॉनिटरिंग से मरीज को बचाया गया।
मछली की पित्त की थैली में होता है ज़हरीला टॉक्सिन
डॉ. अरोरा ने बताया कि मछली की पित्त की थैली में “सायरपरोल” नामक जहरीला टॉक्सिन होता है, जो शरीर में जाने के बाद लिवर और किडनी को तेजी से नुकसान पहुंचा सकता है। आमतौर पर यह समस्या समुद्री क्षेत्रों में देखी जाती है, लेकिन मध्य भारत में यह दुर्लभ है।
सतर्कता जरूरी
उन्होंने लोगों को चेतावनी देते हुए कहा कि मछली के साथ गलती से भी पित्त की थैली का सेवन न करें। अगर किसी को अचानक उल्टियां, दस्त, या लिवर-किडनी की खराबी के लक्षण नजर आएं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। समय पर सही इलाज ही जान बचा सकता है।
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