इंदौर जिले में गुरुवार से निरोगी काया अभियान की शुरुआत होगी, जो 31 मार्च तक चलेगा। इस अभियान के तहत 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की शुगर, ब्लड प्रेशर और नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) सहित अन्य बीमारियों की विशेष स्क्रीनिंग की जाएगी। अभियान का उद्देश्य गैर-संचारी रोगों के नियंत्रण को मजबूत करना और शुरुआती स्तर पर इलाज व प्रबंधन सुनिश्चित करना है।
स्क्रीनिंग के साथ मिलेगा इलाज भी
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. बी.एस. सैत्या ने बताया कि इस अभियान का मुख्य लक्ष्य समय पर बीमारियों की पहचान कर जल्द से जल्द इलाज शुरू करना है, जिससे स्वस्थ समुदाय का निर्माण किया जा सके।
अभियान के अंतिम पाँच दिनों में आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में विशेष स्क्रीनिंग की जाएगी, जबकि अन्य स्थानों पर स्वास्थ्य शिविरों के माध्यम से जांच की जाएगी। यदि स्क्रीनिंग में शुगर या ब्लड प्रेशर की समस्या पाई जाती है, तो कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (CHO) टेलीमेडिसिन के माध्यम से विशेषज्ञों से परामर्श लेकर इलाज शुरू करेंगे। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में डॉक्टर उपचार प्रदान करेंगे, जबकि अनियंत्रित मामलों को उच्च स्वास्थ्य केंद्रों में रेफर किया जाएगा।
लिवर को स्वस्थ रखना क्यों जरूरी है?
डॉ. सैत्या ने बताया कि लिवर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो पाचन में मदद करने और ऊर्जा संग्रहित करने का कार्य करता है। इसलिए, इसे स्वस्थ बनाए रखना संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
इस अभियान के तहत नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) की जांच के लिए आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में बीएमआई (BMI) की गणना की जाएगी। यदि किसी व्यक्ति का बीएमआई 23 से अधिक होता है, तो उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) में आगे की जांच के लिए भेजा जाएगा। यदि वहां फाइब्रोसिस स्कोर 1.45 से अधिक पाया जाता है, तो मरीज को उच्च स्वास्थ्य केंद्र में रेफर किया जाएगा।
समय पर जांच और देखभाल है जरूरी
डॉ. सैत्या ने बताया कि शुगर, ब्लड प्रेशर और NAFLD जैसी बीमारियाँ दीर्घकालिक (क्रॉनिक) होती हैं, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलतीं। इनके लक्षण धीरे-धीरे उभरते हैं और इन्हें लंबे समय तक देखभाल की आवश्यकता होती है। वयस्क पुरुषों और महिलाओं के अलावा, बच्चों में भी इनका खतरा बढ़ रहा है।
ये बीमारियाँ जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती हैं और कई मामलों में असमय मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं, विशेष रूप से वृद्धावस्था में। हालाँकि, समय पर जांच, उचित इलाज और जीवनशैली में बदलाव के माध्यम से इनका प्रभाव कम किया जा सकता है।
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