इंदौर। बाल निकेतन संघ, पागनीसपागा, इंदौर एक भावुक और ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बना, जब संस्था की पूर्व छात्रा एवं लेखिका श्रीमती कल्याणी मदान की पुस्तक ‘यादों के झरोखे से’ का विमोचन संस्था परिसर में हुआ। यह अवसर केवल पुस्तक विमोचन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पुराने साथियों के पुनर्मिलन, स्मृतियों के ताज़ा होने और जीवन की अनमोल कहानियों को फिर से जीने का उत्सव बन गया।
समारोह के दौरान कल्याणी मदान ने विशेष रूप से संस्था की संस्थापिका पद्मश्री शालिनी ताई मोघे और दादा साहब के योगदान को श्रद्धापूर्वक याद किया। उन्होंने भावुक होकर कहा कि बाल निकेतन संघ ने उनके व्यक्तित्व की नींव रखी और यहाँ मिले संस्कारों ने उन्हें आत्मनिर्भर और संवेदनशील बनाया। उनके अनुसार, यह पुस्तक उनके लिए केवल साहित्यिक कृति नहीं, बल्कि सहपाठियों, शिक्षकों और संस्था के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।
कार्यक्रम में कल्याणी मदान के सहपाठी भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। मंच से अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने उन दिनों को याद किया जब साथ मिलकर परीक्षाओं की तैयारी, कठिनाइयों का सामना, खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों का आनंद लिया था।
कल्याणी की पुस्तक में उनके बाल निकेतन संघ में बिताए गए आठ सुनहरे वर्षों का जीवंत चित्रण है—संस्था का वातावरण, शिक्षकों की प्रेरणा, अनुशासन और मूल्यों की शिक्षा, साथ ही सहपाठियों के साथ की दोस्ती और आत्मीयता। पुस्तक में उन्होंने यह संदेश देने का प्रयास किया है कि शिक्षा केवल ज्ञान का संग्रह नहीं, बल्कि जीवन की दिशा तय करने वाली धरोहर है।

इस अवसर पर उन्होंने एक स्मृति साझा की कि जब भी विद्यालय में दिव्यांग बच्चों के लिए कार्यक्रम होता, तो दादा साहब स्वयं नंगे पैर पूरे मैदान में घूमकर यह सुनिश्चित करते कि कहीं कोई नुकीली वस्तु बच्चों को चोट न पहुँचा दे।
बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. नीलिमा अदमने ने भावुक शब्दों में कहा कि भले ही शालिनी ताई अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका मार्गदर्शन आज भी जीवित है। उन्होंने कल्याणी का आभार जताते हुए कहा कि इस पुस्तक ने उन अनमोल यादों को धरोहर के रूप में संजो दिया है।
पर्यावरणविद् डॉ. जनक पलटा ने भी अपने विचार साझा करते हुए कहा कि शालिनी ताई का नाम समाजसेवा के क्षेत्र में सदैव आदर के साथ लिया जाएगा। उनकी शिक्षा और संस्कार आज भी विद्यार्थियों को समाज सेवा की राह पर अग्रसर होने की प्रेरणा देते हैं।
कार्यक्रम का समापन पूर्व छात्राओं और वर्तमान शिक्षकों के आत्मीय संवाद से हुआ। पुरानी यादें, साझा अनुभव और भविष्य में संस्था से जुड़े रहने का संकल्प इस समारोह को एक पारिवारिक मिलन में बदल गया। यह विमोचन समारोह केवल साहित्यिक आयोजन नहीं, बल्कि बाल निकेतन संघ की परंपरा, शिक्षा और अपनत्व की विरासत का उत्सव बन गया।
Thank you for reading this post!
