इंदौर। न्यूरोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की 73वीं वार्षिक कॉन्फ्रेंस एनएसआईकॉन 2025 का भव्य आयोजन इंदौर के ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में जारी है। यह सम्मेलन अपने आप में ऐतिहासिक है, क्योंकि देश-विदेश से आए 1600 से अधिक विशेषज्ञ और शोधकर्ता न्यूरोसाइंस के क्षेत्र में अपने ज्ञान और अनुभव का व्यापक आदान-प्रदान कर रहे हैं।
शुक्रवार, 12 दिसंबर को तीसरे दिन के सत्रों में वे विषय केंद्र में रहे जो जीवन रक्षण और रोगियों की बेहतर देखभाल से सीधे जुड़े हैं। विशेषज्ञों ने न्यूरोसर्जरी और न्यूरोलॉजी की ट्रेनिंग को और अधिक प्रभावी बनाने के उपायों पर भी विचार-विमर्श किया। इंट्राक्रैनियल एनेयूरिज्म, ब्रेन हेमरेज और मस्तिष्क की रक्तवाहिनियों से संबंधित गंभीर विकारों पर नवीनतम शोध व उन्नत उपचार तकनीकों पर गहन चर्चा हुई।
कॉन्फ्रेंस ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन डॉ. वसंत डाकवाले ने बताया कि तीसरे दिन के सत्र इस ओर संकेत करते हैं कि भारत न्यूरोसाइंस में एक नए युग की ओर अग्रसर है। उन्होंने कहा, “हमारा लक्ष्य सिर्फ बीमारियों का इलाज नहीं, बल्कि लोगों को सुरक्षित, सरल और मानवीय स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना है।”
उन्होंने बताया कि इस दिन 200 से अधिक शोधपत्र मस्तिष्क ट्यूमर, मिर्गी, मूवमेंट डिसऑर्डर, कैंसर की कीमोथेरेपी, सिर व रीढ़ की चोटों तथा न्यूरोवैस्कुलर बीमारियों जैसे विषयों पर प्रस्तुत किए गए। ग्लायोमा में जेनेटिक बदलावों की पहचान, ब्रेन इंजरी ट्रीटमेंट सॉल्यूशन्स की तुलना, पार्किंसन रोगियों में डीप ब्रेन स्टिम्यूलेशन से हुए सुधार और मोया मोया रोग के नए उपचार दृष्टिकोणों ने शोधकर्ताओं को नई दिशा दी।

अंतरराष्ट्रीय सर्जन डॉ. लुईस बोरबा, जिन्होंने डॉ. राम गिंदे ओरेशन प्रस्तुत किया, ने कहा कि न्यूरोसर्जरी अत्यंत सूक्ष्मता और एकाग्रता की मांग करती है। इसमें गहन अध्ययन और लगातार अभ्यास आवश्यक हैं। उन्होंने युवा सर्जन्स से कहा कि इस कठिन क्षेत्र में वही आगे आएँ जो मेहनत और अनुशासन से पीछे न हटें, क्योंकि इस कार्य में छोटी सी गलती भी मरीज के जीवन को जोखिम में डाल सकती है।
प्रो. डॉ. मानस पाणिग्राही ने प्रेसिडेंशियल ओरेशन में भारतीय न्यूरोसर्जरी की प्रगति और उसकी वैश्विक भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत अब तेजी से उभरता न्यूरोसर्जरी केंद्र बन रहा है। भारतीय मरीजों पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि सही समय पर निदान और नई तकनीकें जीवनरक्षक सिद्ध हो रही हैं। उन्होंने कहा, “हर मरीज के लिए एक ही तकनीक उपयुक्त नहीं होती — यही विविधता व्यक्तिगत उपचार की कुंजी है।”
डॉ. पाणिग्रही ने भारत की गुरु–शिष्य परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि यही हमारी मेडिकल शिक्षा को अनुशासन, शिष्टाचार और सेवा-भाव से जोड़ती है।
ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. जे. एस. कठपाल ने बताया कि सम्मेलन में ट्रेनिंग की गुणवत्ता, डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने की सरकारी नीतियों और प्रशिक्षणार्थी डॉक्टरों के स्वास्थ्य संरक्षण पर उपयोगी चर्चाएँ हुईं। उन्होंने कहा कि नींद संबंधी बीमारियों पर आधारित विशेष सत्र, जिसे मुंबई के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. निर्मल सूर्य ने संबोधित किया, अत्यंत सार्थक रहा। उन्होंने बताया कि “नींद की समस्या आज की जीवनशैली से जुड़ी सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बनती जा रही है, जिसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।”
डॉ. कठपाल ने यह भी स्पष्ट किया कि ब्रेन एनेयूरिज्म में की जाने वाली सर्जरी और क्लिपिंग आज भी प्रभावी विधियाँ हैं और एंडोवास्कुलर कॉइलिंग ही एकमात्र विकल्प नहीं है। इसलिए मरीजों को सभी संभावित उपचारों की जानकारी देना आवश्यक है।
एनएसआईकॉन 2025 का तीसरा दिन ‘NSI WIN सेक्शन’ के नाम रहा, जो महिलाओं के स्वास्थ्य और न्यूरोसाइंस में उनकी बढ़ती भूमिका पर केंद्रित था। इस सत्र में 200 से अधिक महिला न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन शामिल हुईं। विशेषज्ञों ने चर्चा की कि बेहतर अवसरों, आधुनिक प्रशिक्षण और सामाजिक समर्थन के कारण अब महिलाएँ इस चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में नेतृत्व कर रही हैं।
युवा डॉक्टरों के लिए आयोजित पोस्टर सत्र में रोबोटिक सर्जरी, बाल रोग न्यूरोलॉजी, स्पाइनल विकारों और उभरती तकनीकों पर शोध प्रस्तुत किए गए। पर्ल्स ऑफ विज्डम सिम्पोजियम में चिकित्सा विज्ञान में अनुभव की भूमिका, आधुनिक प्रोटोकॉल और लेखन कौशल पर चर्चा हुई।
दिन का समापन भारतीय न्यूरोसर्जरी शिक्षा के मानकों को और बेहतर बनाने पर केंद्रित पैनल डिस्कशन से हुआ।
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