इंदौर। केयर सीएचएल हॉस्पिटल, इंदौर ने चिकित्सा जगत में एक अहम सफलता हासिल की है। पहली बार मध्य भारत में हॉस्पिटल की यूरोलॉजी टीम ने मूत्रमार्ग (यूरेथ्रा) की सिकुड़न का इलाज लैबोरेटरी में तैयार की गई त्वचा का उपयोग करके किया।
अब तक इस समस्या के लिए मुख्य रूप से एंडोस्कोपिक तकनीक या फिर शरीर के अन्य हिस्सों (जैसे गाल के अंदरूनी हिस्से) से त्वचा निकालकर सर्जरी की जाती थी। हालांकि, एंडोस्कोपिक विधि की सफलता दर मात्र 30–35 प्रतिशत थी और मरीजों को अधिक दर्द व जटिलताओं का सामना करना पड़ता था।
केयर सीएचएल हॉस्पिटल की टीम ने इस चुनौती का नया समाधान खोजते हुए मरीज की अपनी त्वचा को प्रयोगशाला में विकसित किया और उसी का उपयोग ऑपरेशन के दौरान किया। इस इनोवेटिव पद्धति से सफलता दर 70–75 प्रतिशत तक पहुँच गई, जो परंपरागत तकनीकों की तुलना में लगभग दोगुनी है। इस प्रक्रिया से न केवल मरीज के शरीर के अन्य हिस्सों को अतिरिक्त नुकसान से बचाया गया, बल्कि रिकवरी भी अधिक सुरक्षित और तेज़ रही।
केयर सीएचएल हॉस्पिटल, इंदौर के कंसल्टेंट यूरोलॉजिस्ट डॉ. विपिन शर्मा ने बताया—
“मूत्रमार्ग की सिकुड़न का इलाज हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। पारंपरिक तकनीकों की कम सफलता दर और बार-बार सर्जरी की आवश्यकता मरीजों के लिए बड़ी परेशानी थी। पहली बार हमने मरीज की अपनी त्वचा को प्रयोगशाला में ग्रो कर उसका सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया। इससे न केवल सफलता दर बढ़ी है बल्कि जटिलताएँ भी काफी हद तक कम हुई हैं। यह उपलब्धि हमारे हॉस्पिटल और पूरे मध्य भारत के लिए गौरव की बात है। आगे चलकर इस तकनीक से मरीजों को बार-बार सर्जरी से भी निजात मिलेगी और लंबे समय तक बेहतर परिणाम मिलेंगे।”
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