इंदौर: चिकित्सा क्षेत्र में लगातार प्रगति हो रही है और एंडोस्कोपिक तकनीकों में नई उपलब्धियां सामने आ रही हैं। इन्हीं तकनीकों में से एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड (ईयूएस) भी है, जिसने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोगों के निदान और उपचार की दिशा बदल दी है। इसी अत्याधुनिक तकनीक को लेकर मेदांता अस्पताल, इंदौर में रविवार, 3 अगस्त 2025 को एक विशेष ईयूएस ट्रेनिंग वर्कशॉप का आयोजन किया गया। यह वर्कशॉप विशेष रूप से गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के प्रशिक्षु डॉक्टरों, डीएम/डीएनबी विध्यार्थियों और एंडोस्कोपी में रुचि रखने वाले पंजीकृत चिकित्सा पेशेवरों के लिए रखी गई। मुख्य उद्देश्य प्रतिभागियों को सैद्धांतिक के साथ-साथ प्रायोगिक जानकारी देना था; कार्यक्रम में केस स्टडीज़, लाइव डेमो और विशेषज्ञों के साथ संवाद भी शामिल रहे।
वर्कशॉप के कोर्स डायरेक्टर डॉ. हरि प्रसाद यादव ने कहा, “ईयूएस जैसी नवीन तकनीकें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोगों के निदान और उपचार को और अधिक प्रभावशाली बना रही हैं। पारंपरिक जांच की तुलना में यह तकनीक अधिक स्पष्टता और सटीकता देती है, जिससे मरीज को सही समय पर बेहतर इलाज मिल पाता है। हमारा उद्देश्य है कि युवा चिकित्सक इस तकनीक को केवल पुस्तकों से न सीखकर वास्तविक केस और क्लिनिकल सिचुएशन के माध्यम से समझें, जिससे वे भविष्य में बेहतर निर्णय ले सकें।”
डॉ. अरुण सिंह भदौरिया, कोर्स डायरेक्टर, ने कहा, “यह वर्कशॉप उन मेडिकल प्रोफेशनल्स के लिए एक सुनहरा अवसर रही, जो एंडोस्कोपी की लेटेस्ट तकनीकों को करीब से जानना चाहते हैं। इससे उनकी क्लिनिकल स्किल्स और आत्मविश्वास, दोनों में वृद्धि होगी।”
ईयूएस एक उन्नत तकनीक है जिसमें एंडोस्कोपी और अल्ट्रासाउंड को मिलाया गया है। इसकी मदद से डॉक्टर पाचन तंत्र और आसपास के अंगों को अत्यंत स्पष्टता और सटीकता के साथ देख सकते हैं। यह तकनीक ट्यूमर्स, पित्ताशय की पथरी, पैंक्रियाज संबंधी बीमारियां, लिंफ नोड्स जैसी जटिल स्थितियों के सही निदान में अत्यंत सहायक है। पारंपरिक एंडोस्कोपी के मुकाबले यह तकनीक ज्यादा गहराई और स्पष्टता देती है; साथ ही FNAC व बायोप्सी के लिए भी सही स्थान की पहचान करने में सक्षम है। ऑपरेशन से पूर्व रोग की सटीक स्थिति जानने के लिए भी ईयूएस अहम भूमिका निभाती है।
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