आईआईटी इंदौर ने ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी के इलाज के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी छलांग लगाई है। उनके शोधकर्ताओं ने एक ऐसी दवा विकसित की है जो टीबी के बैक्टीरिया की सुरक्षा परत को निशाना बनाती है, जिससे बैक्टीरिया आसानी से मर जाते हैं। यह खोज भारत में और दुनिया भर में टीबी के बोझ को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
क्यों है यह खोज महत्वपूर्ण?
- ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी: दुनिया भर में टीबी के कई मामले ड्रग-रेसिस्टेंट हो गए हैं, जिसका अर्थ है कि पारंपरिक दवाएं उन पर प्रभावी नहीं होती हैं। आईआईटी इंदौर की यह दवा इन ड्रग-रेसिस्टेंट बैक्टीरिया को खत्म करने की क्षमता रखती है।
- भारत में टीबी का बोझ: भारत में टीबी के मामले दुनिया में सबसे अधिक हैं। इस नई दवा से भारत में टीबी के मरीजों को राहत मिल सकती है और देश को टीबी मुक्त बनाने के लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद मिल सकती है।
- स्वदेशी दवा निर्माण: इस दवा के विकास से भारत में स्वदेशी दवा निर्माण को बढ़ावा मिलेगा और देश को दवाओं के आयात पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: टीबी एक गंभीर बीमारी है जो न केवल मरीजों के जीवन को बर्बाद करती है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है। इस नई दवा से उपचार लागत कम हो सकती है और उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।
कैसे काम करती है यह दवा?
यह दवा टीबी के बैक्टीरिया की एक विशेष सुरक्षा परत को निशाना बनाती है जिसे माइकोलिक एसिड कहा जाता है। यह परत बैक्टीरिया को बाहरी वातावरण से बचाती है और उन्हें एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव से बचाती है। आईआईटी इंदौर की दवा इस परत को नष्ट करके बैक्टीरिया को कमजोर बना देती है और उन्हें एंटीबायोटिक दवाओं के लिए संवेदनशील बना देती है।
आगे का रास्ता
वर्तमान में, इस दवा का परीक्षण चूहों पर किया जा रहा है और परिणाम उत्साहजनक हैं। यदि मानव परीक्षणों में भी यह दवा प्रभावी साबित होती है तो यह टीबी के इलाज के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है।
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