इंदौर: महज 15 दिन के एक नवजात शिशु में जब एक दुर्लभ संक्रमण ने दस्तक दी, तब इंदौर के बारोड़ अस्पताल के डॉक्टरों ने एक अभूतपूर्व चिकित्सकीय सफलता हासिल की। शिशु की पीठ और पुट्ठों की त्वचा काली पड़ने के साथ, संक्रमण तेजी से पेट और नाभि तक फैल गया था। यह स्थिति विशेष रूप से खतरनाक थी, क्योंकि नाभि के माध्यम से संक्रमण शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित कर सकता था।
बच्चे को सिनर्जिस्टिक बैक्टीरियल गैंग्रीन और सेप्टीसीमिया का गंभीर संक्रमण था। डॉ. हिमांशु केलकर की देखरेख में भर्ती कराए जाने के समय, बच्चे की ब्लड काउंट 29,000 तक पहुंच चुकी थी। नवजात दूध पीने में भी असमर्थ था, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई थी।
विशेषज्ञों की राय
बारोड़ अस्पताल के चीफ़ प्लास्टिक और रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन डॉ. अश्विनी दास ने इस मामले को “अत्यंत जटिल और चुनौतीपूर्ण” बताया। उन्होंने कहा, “सिनर्जिस्टिक बैक्टीरियल गैंग्रीन नवजात शिशुओं के लिए एक अत्यंत घातक संक्रमण है। इस मामले में, टीम के समर्पण और परिवार के विश्वास ने असंभव को संभव बना दिया।”
चिकित्सा में एक महत्वपूर्ण नवाचार था मेट्रिडर्म (कृत्रिम त्वचा) का उपयोग। एक कंपनी ने 40,000 रुपये की कृत्रिम त्वचा नि:शुल्क उपलब्ध कराई, जिसका दो बार सफल प्रयोग किया गया। यह दुनिया में पहला मामला है जहां 15 दिन के नवजात पर डर्मल सब्सटीट्यूट का सफल प्रयोग किया गया।
समन्वित टीम प्रयास
बारोड़ हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ. संजय गोकुलदास ने इस सफलता को पूरी मेडिकल टीम का सामूहिक प्रयास बताया। एनेस्थीसिस्ट डॉ. चौहान, पीडियाट्रिशियन डॉ. हिमांशु केलकर, पीडियाट्रिक आईसीयू की इंटेंसिविस्ट डॉ. ब्लूम वर्मा, और डॉ. अश्विनी दास की टीम ने मिलकर इस जटिल चुनौती का सामना किया।
नई जिंदगी की ओर
आज, वही नन्हा सार्थक सवा महीने का 4 किलो का स्वस्थ बालक है। डॉ. गोकुलदास के शब्दों में, “यह केवल चिकित्सा की जीत नहीं, बल्कि एक परिवार की उम्मीदों का पुनर्जन्म है। यह मेडिकल जगत के लिए एक प्रेरणादायक उपलब्धि है।”
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